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Friday 5 February 2010

कुछ तो आप भी समझ ही गए होंगे श्रीमान खान ---------------------

इस देश के एक स्वतंत्र नागरिक के रूप में,
मै उतना ही  स्वतंत्र हूँ
  जितना खूटे से बंधी गाय. 
एक निश्चित दायरे में,
एक आम आदमी के दायरे तक स्वतंत्र .
जैसे ही कोई आम
  किसी  खास के बारे में कुछ कहता है, 
वो खटकने लगता है ,व्यवस्था के ठेकेदारों को .
नेता,अफसर ,सरकार  और हर किसी खास को. 
 उसे तुरंत दबा दिया जाता है जो ,
 लोकतंत्र  को लोकतंत्र  समझने   की   भूल  करता  है. 

 लोक  तन्त्र  की  बपौती  तो  खास  लोंगो  के लिए  है.
 आप  और हमारे  लिए  नहीं  मिस्टर    खान  .
 और आप   सच  कहना  चाहते  है,
 बस   इस मुगालते   में की  -    MY NAME IS KHAN
 कुछ  तो  आप   भी  समझ  ही गए  होंगे  श्रीमान  खान ,
 कई  कारणों  से ये  देश है महान  .
आप  ने  माफ़ी नहीं मांगी लेकिन,
इस  एहसास के नीचे दबा दिए गए की ,
 आप से गलती हुई है .
 ये तो आप की हालत है,
 हम जैसों  का क्या ?

 जिनका  नाम क्या है ,
 यह सिवाय उनके किसी को भी नहीं मालूम .
 इतना हंगामा बरपा ,
 इतनी लाचारी झेली ,
 फिर भी चुप हो अब क्योंकि ,
 वही बचने का अंतिम उपाय है,

सहना ही इस देश में  बचना है .
 वो भी चुप चाप ,एक दम चुप
समझे  ना ?



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