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Sunday 21 March 2010

झुझलाया हुआ था ,अलसाया हुआ था ;

झुझलाया हुआ था ,
अलसाया हुआ था ;
तल्खी थी बातों में ,
शरमाया हुआ था ;
बयां हो रहा था कल रात का किस्सा ,
नहीं चाहता था वो ,
मैं जानू तूफानी रात का किस्सा ;
उलझे हुए बाल तूफान साथ लाये थे ,
गरदन के वो निशा,
निशानी खास लाये थे ;
आखों की लाली बन रही थी रात का दर्पण ,
बदन की भगिमा बता रही थी प्यार का अर्पण ;
लौट आया मै ,
अपनी मोहब्बत का कर दर्शन ;
नहीं चाहता बन जाऊं उसकी प्यास की अड़चन ;
झुझलाया हुआ था ,
अलसाया हुआ था ;
तल्खी थी बातों में ,
शरमाया हुआ था ;

Thursday 18 March 2010

गर्दिशों का दौर कुछ इस कदर आता है ,

तक़दीर जब बिगड़ जाती है ,
तकलीफें हर रोज नया रास्ता तलाश आती हैं ;
दुविधाएं हर ओर बिखर जाती है ,
इल्जामों की बहार छा जाती है ;
जो कायल थे तेरी मासूमियत के ,
उन्हें भी बातों में सियासत नजर आती है ;
तक़दीर जब बिगड़ जाती है ,
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गर्दिशों का दौर कुछ इस कदर आता है ,
अपनो को भी तेरे रिश्तों में चोर नजर आता है ;
लोगों के अंदेशों की सीमा नहीं बचती है ,
कितनो को तेरी अच्छाई भी बुराई सी दिखती है /
तक़दीर जब बिगड़ जाती है /
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बिगड़ा नसीब भी बड़ा गुल खिलाता है ,
दर्द हर मोड़ पे मिल जाता है ;
जब भी कोई जिंदगी में गिरता नजर आता है ;
शक का कीड़ा कईयों को काट जाता है ,
भाग्य जब रूठे तो आछेपो की बन आती है ;
अपनो को भी तेरी नीयत में खोट नजर आती है ;
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तक़दीर जब बिगड़ जाती है ,
तकलीफें हर रोज नया रास्ता तलाश आती हैं ;

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वक़्त काट ये वक़्त भी गुजर जायेगा ,
तेरी सच्चाई का चांटा कितनो के चेहरे पे नजर आएगा ;
जिनके दिल में कालिख उनके बातों की परवा क्यूँ हो ,

अपने का नकाब पहने दुश्मन की खुदाई क्यूँ हो ;
तुझपे उछाले कीचड़ का दाग उनपे नजर आएगा ;

वक़्त काट ये वक़्त भी गुजर जायेगा /

तेरी कमियों की खोज सबब हो जिसका ,
तुझे गिराना ही सारा चरित्र हो जिनका ;
उनका व्यवहार भी सबको समझ आएगा ,
वक़्त काट ये वक़्त भी गुजर जायेगा ,;

मनुष्य का भाग्य जब बदल जाता है ,
मुंशिफ बन जाये राजा ज्ञानी धूल खाता है;
वर्षों की मेहनत पल में खाक बन जाती है ;
राह चलते को मिटटी में दौलत नजर आ जाती है ;
वक़्त काट ये वक़्त भी गुजर जायेगा ,
तेरी सच्चाई का चांटा कितनो के चेहरे पे नजर आएगा /
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